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बेहद खुबसूरत रचना और लाजबाब लगा स्वर में सुनना
ReplyDeleteराखी की असीम शुभ कामनायें
पहले तो आपको राखी के अवसर पर बहुत सारी शुभकामनाएं! बहुत अच्छा लगा यहाँ तक आकर! बेहद सुन्दर प्रस्तुति...........
ReplyDeletebahut sundar bhav -abhivyakti
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, स्वर तो लाजबाब है.
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल और गायकी ,बहुत- बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteअच्छी रचना !!
ReplyDeleteआपकी यह रचना पढ़कर सुनकर अच्छी लगी वाकई :)
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteवाह बेहतरीन रचना की खुबसूरत प्रस्तुति ... बधाई एवं शुभकामनाये :)
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल और उसकी लाज़वाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह !!! बहुत सुन्दर रचना ----
ReplyDeleteजीवन का सार्थक सच कहती हुई ---
बधाई ----
आग्रह है ----
आवाजें सुनना पड़ेंगी -----
वाह वाह ! सचमुच मज़ा आ गया !
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए, बधाई आपको !
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteऊपर वाला भी कुछ सोचे,
ReplyDeleteमैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
अंततः सब ऊपर वाले के हाथ में ही होता है..... इसलिए हम भी सिर्फ अपने लिए ही क्यों सोचें......बहुत सुन्दर सकारात्मक प्रस्तुति
बातों की तलवार चलाए,
ReplyDeleteकैसे उसको अपना सोचूँ।
बहुत खूबसूरत शब्द
आपकी आवाज़ भी चार चाँद लगा रही है इस खूबसूरत ग़ज़ल में ...
ReplyDeleteमज़ा आया बहुत ही ...
खूबसूरत गज़ल, सुंदर गायिकी. आपने ने इसे बहुत अच्छे ढंग से संगीतबद्ध किया है...बधाई!
ReplyDeleteआपका सुझाव बेहद पसंद आया. यदि ऐसा कुछ हो पाया तो यकीनन मुझे बेहद ख़ुशी होगी...
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ !
भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteऊपर वाला भी कुछ सोचे,
ReplyDeleteमैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
वाह बेहतरीन
सुन्दर ग़ज़ल और गायकी
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteउम्दा गजल.... बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खुबसुरत .....सुनने में और खुबसुरत लगी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल, दिल की गहराई का वर्णन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteSundar rachna.
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर लिखा पंडित जी । बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों में सम्प्रेषणीय गज़ल । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबढिया भाई
ReplyDeleteऊपर वाला भी कुछ सोचे,
ReplyDeleteमैं ही क्योंकर अपना सोचूँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
Swar badh sundar rachna
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल और धुन, बधाई.
ReplyDeletekya baat
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल एवं आवाज़ ....पर
ReplyDeleteबालिग होकर ये मुश्किल है, .. पर सोचना तो वालिग़ होकर ही पड़ता है ...नाचापन में कौन सोचता है.......
-----ऊपर वाला तो सदा सोच विचार कर ही करता है ...सोचना तो नानाव को ही है उसी को....
जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ। ...
नाचापन = बचपन ......नानाव = मानव
ReplyDeleteवाह ... मज़ा आ गया पढ़ कर ... दुगना मजा आया सुन कर ...
ReplyDeleteहा शेर लाजवाब है ...